Sunday 27 March 2011

२६ मार्च महादेवी वर्मा के जन्म दिवस पर विशेष

२६ मार्च महादेवी वर्मा के जन्म दिवस पर विशेष

आधुनिक युग की मीरा कहलाने वाली तथा हिंदी की सशक्त कवयित्रियों व छायावाद के प्रमुख चार स्तंभों में से एक महादेवी वर्मा ने, संख्या की दृष्टि से, सबसे कम कविताएँ लिखी हैं। किन्तु, इनकी कविताओं की गुणवत्ता ने विदेशी साहित्यालोचकों तक का ध्यान आकृष्ट किया है। इटली की हिन्दी विदुषी फ्रांचेस्का ओर्सिना (Francesca Orsini)ने महादेवी को एक 'Reticent Autibiographer' करार देते हुए महादेवी के व्यक्तिव के तीन पहलुओं पर प्रकाश डाला है। महादेवी के व्यक्तित्व का एक पहलू है,जो उनकी कविताओं में 'कवि-कल्पित व्यक्तित्व' (Poetic Presona)के रूप में व्यक्त हुआ है। दूसरा पहलू उनके 'विचारक व्यक्तित्व' का है, जो उनके चिन्तन-प्रधान साहित्यक निबंधों में व्यक्त हुआ है और तीसरा पहलू है, उनके करुणापूर्ण एवं सहानुभूति-स्नात व्यक्तित्व का, जो वाणी, लेखनी और कर्म से वंचितों के प्रति तथा नरेतर जगत के प्रणियों के प्रति ममतापूर्वक सक्रिय था।
वेदना और करुणा महादेवी वर्मा के गीतों की मुख्य प्रवृत्ति रही। असीम दु:ख के भाव में से ही महादेवी वर्मा के गीतों का उदय और अन्त दोनों होता है। आज उन्ही को याद करते हुए, उनको सच्ची श्रद्धांजलि देते हुए उन्ही की प्रसिद्द तीन कविताएँ आपके समक्ष प्रस्तुत है....



कौन तुम मेरे हृदय में
कौन मेरी कसक में नित
मधुरता भरता अलिक्षत?
कौन प्यासे लोचनों में
घुमड़ घिर झरता अपिरिचत?

स्वणर् स्वप्नों का चितेरा
नींद के सूने निलय में!
कौन तुम मेरे हृदय में?

अनुसरण निश्वास मेरे
कर रहे किसका निरन्तर?

चूमने पदिचन्ह किसके
लौटते यह श्वास फिर फिर ?

कौन बन्दी कर मुझे अब
बँध गया अपनी विजय मे?
कौन तुम मेरे हृदय में?

एक करुण अभाव चिर -
तृप्ति का संसार संचित,
एक लघु क्षण दे रहा
निवार्ण के वरदान शत-शत;
पा लिया मैंने किसे इस
वेदना के मधुर बय में?
कौन तुम मेरे हृदय में?

गूंजता उर में न जाने
दर के संगीतू-सा क्या!
आज खो निज को मुझे
खोया मिला विपरीत-सा क्या!
क्या नहा आई विरह-निशि
मिलन-मधिदन के उदय में?
कौन तुम मेरे हृदय में?

तिमिर-पारावार में
आलोक-प्रतिमा है अकिम्पत;
आज ज्वाला से बरसता
क्यों मधुर घनसार सुरिभत?
सुन रही हँ एकू ही
झंकार जीवन में, प्रलय में?
कौन तुम मेरे हृदय में?

मूक सुख-दख कर रहे
मेरा नया श्रृंगार-सा क्या?
झूम गिवर्त स्वर्ग देता -
नत धरा को प्यार-सा क्या?

आज पुलिकत सष्टि क्या
करने चली अभिसार लय में?
कौन तुम मेरे हृदय में?
***

मधुर-मधुर मेरे दीपक जल!

मधुर-मधुर मेरे दीपक जल!
युग-युग प्रतिदिन प्रतिक्षण प्रतिपल
प्रियतम का पथ आलोकित कर!

सौरभ फैला विपुल धूप बन
मृदुल मोम-सा घुल रे, मृदु-तन!
दे प्रकाश का सिन्धु अपरिमित,
तेरे जीवन का अणु गल-गल
पुलक-पुलक मेरे दीपक जल!

तारे शीतल कोमल नूतन
माँग रहे तुझसे ज्वाला कण;
विश्व-शलभ सिर धुन कहता मैं
हाय, न जल पाया तुझमें मिल!
सिहर-सिहर मेरे दीपक जल!

जलते नभ में देख असंख्यक
स्नेह-हीन नित कितने दीपक
जलमय सागर का उर जलता;
विद्युत ले घिरता है बादल!
विहँस-विहँस मेरे दीपक जल!

द्रुम के अंग हरित कोमलतम
ज्वाला को करते हृदयंगम
वसुधा के जड़ अन्तर में भी
बन्दी है तापों की हलचल;
बिखर-बिखर मेरे दीपक जल!

मेरे निस्वासों से द्रुततर,
सुभग न तू बुझने का भय कर।
मैं अंचल की ओट किये हूँ!
अपनी मृदु पलकों से चंचल
सहज-सहज मेरे दीपक जल!

सीमा ही लघुता का बन्धन
है अनादि तू मत घड़ियाँ गिन
मैं दृग के अक्षय कोषों से-
तुझमें भरती हूँ आँसू-जल!
सहज-सहज मेरे दीपक जल!

तुम असीम तेरा प्रकाश चिर
खेलेंगे नव खेल निरन्तर,
तम के अणु-अणु में विद्युत-सा
अमिट चित्र अंकित करता चल,
सरल-सरल मेरे दीपक जल!

तू जल-जल जितना होता क्षय;
यह समीप आता छलनामय;
मधुर मिलन में मिट जाना तू
उसकी उज्जवल स्मित में घुल खिल!
मदिर-मदिर मेरे दीपक जल!
प्रियतम का पथ आलोकित कर!
***

मैं नीर भरी दुःख की बदली

मैं नीर भरी दुःख की बदली
मैं नीर भरी दुःख की बदली !
स्पंदन में चिर निस्पंद बसा,
क्रंदन में आहत विश्व हँसा,
नयनो में दीपक से जलते,
पलकों में निर्झनी मचली !
मैं नीर भरी दुःख की बदली !

मेरा पग पग संगीत भरा,
श्वांसों में स्वप्न पराग झरा,
नभ के नव रंग बुनते दुकूल,
छाया में मलय बयार पली !
मैं नीर भरी दुःख की बदली !

मैं क्षितिज भृकुटी पर घिर धूमिल,
चिंता का भर बनी अविरल,
रज कण पर जल कण हो बरसी,
नव जीवन अंकुर बन निकली !
मैं नीर भरी दुःख की बदली !

पथ न मलिन करते आना
पद चिन्ह न दे जाते आना
सुधि मेरे आगम की जग में
सुख की सिहरन हो अंत खिली !
मैं नीर भरी दुःख की बदली !

विस्तृत नभ का कोई कोना
मेरा न कभी अपना होना
परिचय इतना इतिहास यही
उमटी कल थी मिट आज चली !
मैं नीर भरी दुःख की बदली

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